सुभाषित संग्रह: आर्य विचारधारा के लिए महत्वपूर्ण
सुभाषित
भारतीय संस्कृति में सुभाषित (Subhashita) का विशेष स्थान है, जो आर्य विचारधारा को समर्थन करने वाले उत्सवों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। आर्य संस्कृति ने समय के साथ सुभाषितों के माध्यम से अपने विचारों और शिक्षाओं को बखूबी व्यक्त किया है, और इन्हें सुनकर आत्मनिर्भर और सजग नागरिक बनाया गया है।
महत्व
- आत्मनिर्भरता का सिद्धांत: “अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम।” यह सिखाता है कि आत्मा को स्वीकार करने वाले हृदय से व्यक्ति सदैव आत्मनिर्भर रहता है।
- समृद्धि की दिशा: “जितने कष्ट कंटको में है जिसका जीवन सुमन खिला।” यह उत्साही और संघर्षशील जीवन की महत्वपूर्णता को बताता है।
- धर्म और सेवा का महत्व: “सर्व धर्म समा वृत्तिः, सर्व जाति समा मतिः।” यह भारतीय समाज में एकता, सामंजस्य, और सेवा की महत्वपूर्ण बातें साझा करता है।
- ज्ञान का महत्व: “विद्या ददाति विनयं विन्यात याति पात्रताम।” इस सुभाषित से स्पष्ट होता है कि ज्ञान, विनय, और पात्रता के बिना समृद्धि नहीं हो सकती।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उत्सव में सुभाषितों का उपयोग
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का उत्सव एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसमें सुभाषितों का उपयोग करके विभिन्न गतिविधियों को समर्थन किया जा सकता है। यहां कुछ सुभाषित दिए गए हैं जो इस उत्सव के माध्यम से संघ के सिद्धांतों को और बढ़ा सकते हैं:
- एकता का सिद्धांत: “सर्व धर्म समा वृत्तिः, सर्व जाति समा मतिः।” इस से यह सिखने को मिलता है कि सभी लोगों को एकसाथ आगे बढ़ने का समर्थन करना चाहिए।
- सेवा का आदर्श: “सर्व सेवा परानीति रीतिः संघस्य पद्धति।” यह सुभाषित सेवा की महत्वपूर्णता को बताता है और संघ की सेवाभावना को प्रमोट करता है।
- आत्मनिर्भरता की प्रेरणा: “विद्या ददाति विनयं विन्यात याति पात्रताम।” इस से यह सिखने को मिलता है कि विद्या और विनय के माध्यम से आत्मनिर्भरता की प्राप्ति होती है।
- राष्ट्रभक्ति का सिद्धांत: “नत्वहम कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम।” इस से यह सिखने को मिलता है कि सच्चे राष्ट्रभक्ति का मतलब स्वर्ग या पुनर्जन्म की इच्छा नहीं, बल्कि देश की सेवा करना है।
समापन
आर्य संस्कृति की अमूर्त धारा सुभाषितों के माध्यम से आज भी हमें मार्गदर्शन कर रही है। इन सुभाषितों का समावेश उत्सवों में संघ के सिद्धांतों को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है, और लोगों को एक सशक्त और समृद्धि शील राष्ट्र की दिशा में मार्गदर्शन कर सकता है। इस प्रकार, सुभाषितों का उपयोग करना एक सामाजिक और सांस्कृतिक संस्कृति को बढ़ावा देने में सहायक हो सकता है।
महीने के अनुसार सुभाषित
अक्टूबर मास हेतु सुभाषित
अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण ! रोचते । जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥
अर्थ – हे लक्ष्मण ! यह स्वर्णमयी लंका मुझे अच्छी नहीं लगती है, क्योंकि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।
नवम्बर मास हेतु
विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् । पात्रत्वाद् धनमाप्नोति धनाद् धर्मं ततः सुखम् ॥
अर्थ -विद्या विनय को जन्म देती है। विनय से व्यक्ति सत्पात्र कहलाता है। पात्रता (योग्यता) से धन की प्राप्ति होती है और धन से धर्माचरण सम्भव होता है। परिणामतः सुख की प्राप्ति होती है।
दिसम्बर मास हेतु
देशरक्षासमं पुण्यं देशरक्षासमं व्रतम् । देशरक्षासमो यागो, दृष्टो नैव च नैव च ॥
अर्थ – देश रक्षा के समान पुण्य, देश रक्षा के समान व्रत और देश रक्षा के समान यज्ञ नहीं देखा। अर्थात् देश रक्षा ही सर्वोच्च कार्य है।
संगठन से हमारा अर्थ है व्यक्ति और समाज के आदर्श संबंध- श्री गुरु जी
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